- उर्वशी रौतेला 12.25 करोड़ रुपये में रोल्स-रॉयस कलिनन ब्लैक बैज खरीदने वाली पहली आउटसाइडर इंडियन एक्ट्रेस बन गई हैं।
- Urvashi Rautela becomes the first-ever outsider Indian actress to buy Rolls-Royce Cullinan Black Badge worth 12.25 crores!
- 'मेरे हसबैंड की बीवी' सिनेमाघरों में आ चुकी है, लोगों को पसंद आ रहा है ये लव सर्कल
- Mere Husband Ki Biwi Opens Up To Great Word Of Mouth Upon Release, Receives Rave Reviews From Audiences and Critics
- Jannat Zubair to Kriti Sanon: Actresses who are also entrepreneurs
अब गठबंधन की राजनीति के लिए तैयार रहें

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनाव पर प्रेस क्लब में दिलचस्प व्याख्यान
इंदौर। प्रदेश की राजनीतिक एवं प्रशासनिक गतिविधियों से लंबे समय से जुड़े दो वरिष्ठ पत्रकारों की नजरों में आगामी लोकसभा चुनावों में मतदाताओं को गठबंधन पर आधारित राजनीतिक दलों के लिए तैयार रहना होगा। जब-जब देश में किसी लहर के चलते चुनाव हुए हैं, राजनीतिक दलों को भरपूर लाभ मिला लेकिन उसके बाद हुए चुनावों में उन्हीं दलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
हालांकि राजनीति दलों में अब आंतरिक लोकतंत्र नहीं रहा है और बरसों से विभिन्न दलों में एक ही अध्यक्ष जमे हुए हैं। ओपीनियन पोल के नतीजे देखें तो केंद्र की एनडीए सरकार को 100 सीटों का नुकसान हो रहा है। हाल ही हुए विधानसभा चुनाव तीन राज्यों मंे तो बीजेपी विरूद्ध मतदाता के बीच लड़े गए लेकिन अब लगता है कि जनता की उम्मीदें टूटी हैं, किसान, व्यापारी, युवा, उद्योगपति आदि असंतुष्ट हैं। फिर भी कहना मुश्किल है कि अगली लोकसभा का स्वरूप कैसा होगा।
राज्यसभा टीवी के पूर्व संपादक राजेश बादल और एबीपी न्यूज के वरिष्ठ संवाददाता बृजेश राजपूत ने आज प्रेस क्लब के राजेंद्र माथुर सभागृह में संस्था सेवा सुरभि एवं प्रेस क्लब की संयुक्त मेजबानी में ‘पांच राज्यों के चुनाव परिणाम और लोकसभा चुनाव 2019’ विषय पर अपने बेबाक विचार व्यक्त किए।
हाल ही हुए विधानसभा चुनावों का नए दृष्टिकोण से विश्लेषण भी सामने आया जिसमें पहले वक्ता के रूप में बृजेश राजपूत ने कहा कि अब गठबंधन का दौर शुरू हो गया है। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कुछ भी नहीं किया क्योंकि वह चुनाव भाजपा विरूद्ध मतदाता बन गया था।
भाजपा ने काफी पैसा खर्च किया और तैयारियां भी कई दिनों पहले से कर ली थी जबकि कांग्रेस नेता तो 20 दिनों तक दिल्ली में टिकट बंटवारे में ही उलझे रहे। इसके बावजूद कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिल गया। मोदी सरकार की नकारात्मकता भी भारी रही और अकेले शिवराज की मेहनत काम नहीं आई। ओपीनियन पोल में एनडीए को 100 सीटों का नुकसान हो रहा है। अब लोगों में निराशा का दौर है।
दूसरे वक्ता राजेश बादल लंबे समय तक इंदौर की पत्रकारिता से भी जुड़े रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरे लिए इंदौर एक तीर्थ के समान है। यहां विचारों की गंगा बहती है। ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ अभियान की खबर मिलती रहती है। इंदौर से ही नए काम की शुरूआत होती रही है तो इसका श्रेय यहां की पत्रकारिता को जाता है जो विचारों से अपने पाठकों को अमीर बनाए हुए है, इसीलिए इंदौर सबसे अलग है। जहां तक अगले लोकसभा चुनाव की बात है, पिछला चुनाव मोदी लहर का था लेकिन 1978 में जनता पार्टी की लहर के बाद 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस फिर सत्ता में आ गई। इसी तरह 1985 में कांग्रेस की लहर थी लेकिन 90 में फिर कांग्रेस को नुकसान हुआ।
यदि हम पिछली लहर की बात करें तो अब तक यह होता आया है कि लहर के बाद के चुनाव परिणाम लहर के खिलाफ जाते रहे हैं। लहर के बगैर अपनी जीत साबित करना सभी दलों के लिए बड़ी चुनौती है। वर्तमान में राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र नहीं रहा। पिछले 70 वर्षों में देश में कुछ भी नहीं हुआ, यह जुमला पीड़ादायक है।
देश ने काफी तरक्की हर क्षेत्र में की है। इतिहास गवाह है कि जब 1947 में राष्ट्रीय सरकार बनी तो नेहरूजी के मंत्रिमंडल में 12 में से 5 मंत्री विपक्षी दलों के थे और नेहरू के घोर विरोधी भी, लेकिन देश के विकास के मुद्दे पर सब साथ हो जाते थे। अब स्थितियां बदल गई है। यदि नींव के पत्थर को भुलाना शुरू कर दिया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।
विडंबना है कि आंतरिक लोकतंत्र नहीं होने के बावजूद देश के लोकतंत्र को मजबूत करने का सपना देखा जा रहा है। यह एक तरह से सामंतवाद को पनपाने जैसा है। बिहार और यूपी में ग्राम प्रधान भी आगे-पीछे 4-4 गाड़ी और बंदूकधारी सुरक्षागार्ड लेकर चलता है तो हमारी नई पीढ़ी उन्हें देखकर यही तौरतरीके सीखेगी।
हम लोकतांत्रिक समाज की कैसी तस्वीर नई पीढ़ी के सामने पेश कर रहे हैं यह सोचना होगा। अब गठबंधन की राजनीति के लिए हमें तैयार रहना है मगर अफसोस है कि गठबंधन का धर्म निभाना अभी तक नहीं आया है। गठबंधन का आधार विचार होता है। यदि गठबंधन से विचार गायब हो गया तो गठबंधन केवल निहित स्वार्थों का रह जाएगा।
विषय प्रवर्तन किया वरिष्ठ पत्रकार अमित मंडलोई ने। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की राजनीति में भले ही सभी दल अपने तौरतरीकों से चुनावी रणनीति बनाते हैं लेकिन इन सबके बावजूद लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद को मजबूत बनाने के प्रयास भी आवश्यक हैं।
संसद के भीतर भी तिरंगे की आन-बान-शान के लिए जब तक हमारे सांसद कटिबद्ध नहीं होंगे, तब तक सही मायने में सच्चे लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत नहीं हो पाएगी। राजनीति का यह दौर भयावह है, जिसमें लगातार नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है।
प्रारंभ में राज्य के पूर्व महाधिवक्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी आनंद मोहन माथुर ने आमंत्रित वक्ताओं तथा संस्था के पदाधिकारियों के साथ दीप प्रज्जवलन कर इस दिलचस्प व्याख्यान का शुभारंभ किया। अतिथियों का स्वागत प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, नवनीत शुक्ला, सुधीर मोहन शर्मा, शशींद्र जलधारी, कीर्ति राणा, ओमप्रकाश नरेड़ा, कमल कलवानी आदि ने किया। अतिथियों को प्रतीक चिन्ह कुमार सिद्धार्थ, अतुल सेठ आदि ने दिए। इस अवसर पर माथुर की सेवाओं के लिए उनका सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन किया संजय पटेल ने।